कुंडलिनी चक्र क्या है
हमारे शरीर के अंदर सात चक्र होते हैं, जिन्हें हम कुंडलिनी चक्र कहते हैं। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति इन सातों चक्रों को जागृत कर लेता है, वह अपार क्षमताओं का अधिपति बन जाता है और मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। ये चक्र, जिन्हें हम कुंडलिनी चक्र कहते हैं, वे सात अलग-अलग जगहों पर होते हैं और उनके हर एक को जागृत करने के अलग-अलग फायदे होते हैं। वे हमें संपूर्णता से इस माया से मुक्ति दे देते हैं और हमें ईश्वर की ओर ले जाते हैं, अर्थात् मोक्ष की ओर ले जाते हैं। जो भी व्यक्ति सातवें चक्र को जागृत कर लेता है, वह मोक्ष को प्राप्त करने के द्वार को खोल देता है।
जो भी व्यक्ति उन सब को प्राप्त कर लेता है, उसे इस दुनिया में उसके आसपास क्या हो रहा है उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। वह व्यक्ति जो जान चुका होता है कि यह सब जो हमारे आस-पास हो रहा है, जो हमारे आसपास सुख है, वह सब टेम्परेरी है, यानी हमेशा के लिए रहने वाले नहीं हैं, और जो सुख हमेशा हमेशा किसी कारण के बगैर रहता है, वैसा सुख सातवें चक्र के जागृत हो जाने के बाद मिलता है।
सातों चक्रों के नाम मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुरक चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्र हैं।
सभी चक्र
1.मूलाधार चक्र
बीज मंत्र- लं
पंखुड़ियों की संख्या- 4
जिसे आधार चक्र भी कहा गया है, व्यक्ति जो इस चक्र को जागृत कर लेता है, वह व्यक्ति भोजन, निंदा इत्यादि को कंट्रोल में कर लेता है। कहा जाता है कि 99.9% लोग इसी चक्कर में फंसे रहते हैं और पूरे जीवन चक्र से कभी बाहर नहीं निकल पाते हैं। यह चक्र हमें भोजन और निंदा के लिए तरस आता है।
जागृति के बाद,
व्यक्ति जो इस चक्र को जागृत कर लेता है, वह व्यक्ति अपना कंट्रोल भोग, संभवतः निद्रा इत्यादि पर रख सकता है।
2.स्वाधिष्ठान चक्र
बीज मंत्र- वं
पंखुड़ियों की संख्या 6
यहां सही व्याकरण करें: यह चक्र जनन इंद्रियों से 4 उंगलियाँ ऊपर होती हैं, जिस व्यक्ति में यह शक्ति हो जाती है, अर्थात् जो व्यक्ति चक्र पर आता है, वह मौज-मस्ती और मनोरंजन में सक्रिय रहता है। इस चक्र को तामसिक माना जाता है।
जागृति के बाद,
स्वाधिष्ठान चक्र की जागृति के बाद व्यक्ति के अंदर से कुर्ता प्रमाण, अवज्ञा और अविश्वास इन सबका नाश हो जाता है।
3.मणिपुरक चक्र
बीज मंत्र- रं
पंखुड़ियों की संख्या 10
यह चक्र रक्तवर्ण का होता है, यह नाभि में स्थित होता है, जहां पर सभी नाडियाँ एक दूसरे से मिलती हैं। जिस व्यक्ति में यह चक्र जागृत होता है, वह व्यक्ति कर्मयोगी होता है, वह कार्यशील होता है, जो निद्रा, आलस्य इत्यादि से दूर रहता है।
जागृति के बाद,
इस चक्र की जागृति के बाद व्यक्ति में लज्जा, मोह, घृणा इत्यादि का अंत हो जाता है।
4.अनाहत चक्र
बीज मंत्र- यं
पंखुड़ियों की संख्या 12
यह चक्र हृदय स्थान पर स्थित होता है। यह चक्र जिस व्यक्ति में जागृत होता है, वह व्यक्ति सर्जनशील होता है, जैसे कि चित्रकार, लेखक, कवि इत्यादि।
जागृति के बाद,
माना जाता है कि इस चक्र की जागृति के बाद व्यक्ति अलग-अलग जीवनी सुनने में माहिरत हासिल हो जाती है।
5.विशुद्ध चक्र
बीज मंत्र- हं
पंखुड़ियों की संख्या 16
इस चक्र का स्थान हमारे गर्दन, यानी स्वर्ग कंठ, के आस-पास होता है। जिस व्यक्ति में यह चक्र जागृत हो जाता है, वह व्यक्ति कई कलाओं का अधिपति हो जाता है।
जागृति के बाद,
जिस व्यक्ति में विशुद्ध चक्र जागृत हो जाता है, वह व्यक्ति 16 कलाओं का और 16 विभूतियों का मालिक बन जाता है और वह व्यक्ति भूख प्यास को भी कंट्रोल कर सकता है। वह व्यक्ति मौसम के प्रभाव को भी रोक सकता है और उसे वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है।
6.आज्ञा चक्र
बीज मंत्र- हं , क्षं
पंखुड़ियों की संख्या 2
यह चक्र हमारी दोनों आंखों के बीच, यानी जहां हम मेडिटेशन के समय ध्यान केंद्रित करते हैं, स्थित होता है। यह चक्र शांति और स्थिरता की प्रदाना करता है, जो व्यक्ति को चक्र को जागृत कर लेता है, वह व्यक्ति सिद्ध पुरुषों की श्रेणी में आ जाता है।
जागृति के बाद,
जो व्यक्ति आज्ञा चक्र को जागृत कर लेता है, वह व्यक्ति स्थिरता और अखंड शांति का अनुभव करता है। इस व्यक्ति को अपने आसपास होने वाली घटनाओं से कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है। इस प्रकार का व्यक्ति तेज बुद्धि वाला होता है और सब कुछ जानते हुए भी शांत रहता है।
7.सहस्त्रार चक्र
बीज मंत्र – नहीं है
पंखुड़ियों की संख्या- सहस्त्र
सभी चक्रों में से अंतिम चक्र, यानी सहस्त्रार चक्र, यह चक्र को मोक्ष के द्वार की तरह माना गया है। जो व्यक्ति इस चक्र को जागृत कर लेता है, वह मोक्ष को प्राप्त हो जाता है, अर्थात् यह चक्र मोक्ष का द्वार है।
जागृति के बाद,
जो भी व्यक्ति यह आखरी चक्र को जागृत कर लेता है, वह व्यक्ति किसी भी कारण से बिना हमेशा आनंद में ही रहता है।