सत्य क्या है: सत्य की पहचान क्या है

आज के समय में हमें सत्य कि कई व्याख्या ए देखने को मिलती है। कोई कहता हैं कि यह सत्य है, कोई कहता है कि यह असत्य है। कोई एक ही चीज को सत्य कह रहा होता है और कोई उसी चीज को असत्य कह रहा होता है। पर आखिर सत्य होता क्या है? क्या सत्य होता भी है? या फिर असत्य और सत्य जैसी कोई चीज नहीं होती या वह हमारी बनाई हुई सोच पर निर्भर करता है। तो चलो जानते हैं।

सत्य एक दवा है

जी हां आपने बिल्कुल सही सुना है सत्य एक दवा है। जभी भी कोई व्यक्ति अपने रिश्तो में अपने धंधे में या फिर किसी भी जगह सत्य बोलता है। तो वह सत्य दवाई की तरह सामने वाले को सुनने में कड़वा जरूर लग सकता है। पर वह रिश्तो में या फिर धंधे में हो वाह रिश्तो को मजबूत बनाने का काम करता है। सत्य चाहे जितना भी कड़वा क्यों ना हो अंततः वह हमारे लिए दवा के समान कार्य करता है।

सत्य क्या है

विद्वानों का कहना है कि, सत्य वह है जो कल भी था, आज भी है और कल भी वही ही रहेगा। उसमें किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं आता उसे ही सत्य मानना चाहिए। पर क्या यह बात कितनी हद तक सही है? इसको समझने के लिए हम एक उदाहरण लेते हैं, जैसे हमारी आत्मा वह एक सत्य है, वह कल भी थी, आज भी हो और आने वाले समय में भी रहेगी। परंतु जो हमारा शरीर है जो पहले कभी नहीं था, माने हमारे जन्म से पूर्व नहीं था। अभी है। पर हमारी मृत्यु के बाद नहीं रहेगा। यानी वह सत्य होते हुए भी असत्य है।

अभी के लिए वह सत्य जरूर है। क्योंकि हम उसे देख पा रहे हैं। उसे महसूस कर पा रहे हैं। इसीलिए वह सत्य है पर अभी के समय के लिए। वह सनातन सत्य नहीं है। सत्य और सनातन सत्य में तफावत है। जिस पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे।

सत्य से दिशा

सत्या हमें जीवन में सच्चा मार्ग दिखाने की कोशिश करता है। चाहे भले ही वह हमार कठिन क्यों ना हो पर वह हमारे लिए अंततः अच्छा साबित होता है। जबकि असत्य हमें भटकाने की कोशिश करता है, वह हमें गलत मार्ग की ओर ले जाता है जिससे अंततः हम दुख को प्राप्त होते हैं। इसीलिए हमेशा सत्य का ही चुनाव करें चाहे सत्य कितना ही कड़वा क्यों ना हो हमेशा सत्य का ही साथ देना चाहिए।

Leave a comment