आज के समय में श्रद्धा और अंधश्रद्धा के बारे में जाना ना बहुत ही जरूरी है। कई लोग श्रद्धा और अंधश्रद्धा के बीच के अंतर को जान ही नहीं पाते। यह पोस्ट उनके लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगी।
पहले हम श्रद्धा और अंधश्रद्धा के बारे में एक-एक करके जानेंगे। बाद में हम इन दोनों को एक साथ जोड़ कर देखेंगे।
श्रद्धा किसे कहते हैं ।
श्रद्धा यानी दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमारी आस्था। श्रद्धा सिर्फ ईश्वर के प्रति रखनी चाहिए। श्रद्धा को हम दूसरे शब्द में विश्वास भी कह सकते हैं। ईश्वर के प्रति हमारे मन में जो विश्वास, आस्था होती है। उसे ही सही महीनों में श्रद्धा कहा जाता है। श्रद्धा हमारी भावनाओं से जुड़ी होती हैं। श्रद्धा आप को एकाग्र रहने में मदद करती है। श्रद्धा से जीवन जीना सरल हो जाता है। श्रद्धा हमें किसी भी समस्या का डटकर सामना करने की हिम्मत देती है। श्रद्धा हमारे अंदर एक ऊर्जा की तरह काम करती है। हमें सत्कर्म करने के लिए प्रोत्साहित करती है। बुरे कर्म करने से रोकती है।
श्रद्धा का जुड़ाव हमारे अंतर्मन से होता है। श्रद्धा भी हम क्या देखते हैं, क्या सुनते हैं, बचपन से क्या देखते आए हैं, क्या सुनते आए है, किस माहौल में बढ़े हुए हैं। उस आधार पर हमारी श्रद्धा, आस्था, विश्वास का निर्माण होता है।
अंधश्रद्धा किसे कहते हैं
आज के समय में हमें कई जगह इसके उदाहरण देखने को मिलते हैं। अंधश्रद्धा माने ईश्वर को छोड़कर बाकी सब मैं आपकी आस्था। आपका लगाव जो आपको लगता तो है कि ईश्वर की ओर है। आप को ईश्वर की ओर ले जा रहा है पर वह मार्ग सच में आपको ईश्वर से दूर करने का काम करता है। आज के समय में कई लोग ईश्वर को सर्वश्रेष्ठ मानने की बजह पृथ्वी पर जन्म में और पृथ्वी पर ही मर जाने वाले कई मनुष्य को श्रेष्ठ मानने लगे हैं।
श्रद्धा और अंधश्रद्धा के बीच का तफावत
आज के समय में लोग अंधश्रद्धा और श्रद्धा के बीच के तफावत को समझ नहीं पाते, क्योंकि ना तो उन्होंने गीता का अध्ययन किया हुआ होता है, ना तो उन्होंने वेदों का अध्ययन किया होता है, ना ही तो उन्होंने कभी उपनिषदो को पढ़ा होता है। यह तो दूर की बात है पर अगर उन्हें कोई सच्चा गुरु मिल जाए तो भी उनका उद्धार हो सकता है। पर आज के जमाने में तो जो गुरु बनकर बैठे हैं। उन्होंने ही कभी गीता का अध्ययन नहीं किया होगा, ना तो कभी वेदों को छुआ होगा, कुछ लोग है जो सच में गुरु मानने के योग्य होते हैं। जिन्होंने वेदों का अध्ययन किया होता है। गीता का अध्ययन किया होता है और लोगों को सही राह दिखाने का काम करते हैं।
सच्ची श्रद्धा आपको ईश्वर की ओर ले जाती है। जबकि अंधश्रद्धा आपको ईश्वर से दूर ले जाने का काम करती है। सत्य की राह पर चलना ही श्रद्धा है और कुकर्म करना ही अंधश्रद्धा है। जो काम आप श्रद्धा के नाम पर करते हो और वह काम अगर किसी को दुख पहुंचाता है तो वह अंधश्रद्धा है। अगर आप कहीं भी एकांत जगह में दिन में कभी भी ईश्वर को याद करते हो सच्चे मन से तो वही सच्ची श्रद्धा है।