ध्यान कैसे करें | ध्यान के चमत्कारिक अनुभव

ध्यान सदियों से चली आ रही परंपरा है, यह हमारी संस्कृति की देन है, और ध्यान के अनेकों चमत्कारी फायदे हैं। ध्यान यानी एक ऐसी कड़ी जो हमें परमात्मा से जुड़ती हैं और परमात्मा यानी अनंत सुख जाने कैसा रास्ता है जिस पर शुरुआत में चलना थोड़ा मुश्किल लगता है, पर जो व्यक्ति इसका आदी हो जाता है वह व्यक्ति इसके बिना रह नहीं सकता उसे इसमें अपार आनंद की अनुभूति होती है। तो चलिए आज हम थोड़ा बहुत ध्यान के बारे में जानने की कोशिश करेंगे और उसके चमत्कारिक अनुभव की बात करेंगे।

ध्यान कैसे करें | ध्यान के चमत्कारिक अनुभव

ध्यान क्या है

ध्यान का दूसरा नाम ही अखंडानंद है। किसी एक वस्तु में किसी एक चीज में लीन हो जाने को ही ध्यान कहते हैं। ध्यान माने दो होने की भावना को मिटा कर एक हो जाना। याद कीजिए जब हम सब छोटे थे, तब हमें छोटी-छोटी बातें करने में खुशी मिलती थी। कभी मिट्टी में खेलने से तो कभी दोस्तों के साथ खेलने में। ऐसे तो अनेकों क्रियाएं थी जिनमें हमें आनंद मिलता था। इस आनंद मिलने के पीछे का कारण ध्यान है। ध्यान का परिचय है सब कुछ भुला कर किसी एक कार्य में लीन हो जाने को ही ध्यान कहते हैं।

जब आप यह पढ़ रहे होंगे, तब एक मिनट ठहर कर यह सोचना कि आज तक आपको किस कार्य में सबसे अधिक मजा आया है। तो आपको जानने मिलेगा की जब आप किसी कार्य में बहुत लीन होकर उस कार्य को कर रहे होंगे, तब आपको अधिक मजा आया होगा। वह चाहे कोई खेल हो सकता है या फिर कोई मनोरंजन देखने का कार्यक्रम भी हो सकता है। जिस समय हमें आनंद मिल रहा होता है, उस समय हमारा दिमाग सिर्फ एक कार्य को ही होने चाहिए। हम और कार्य दोनों एक नहीं रह कर एक होने की भावना प्रकट हो जाती थी। यही सही मायने में ध्यान की व्याख्या है। ध्यान का परिचय है सब कुछ भुला कर किसी एक कार्य में लीन हो जाने को ही ध्यान कहते हैं।

ध्यान करने की सही विधि

ध्यान करने की अनेक विधियां हैं और वे सभी अपनी-अपनी जगह पर सही हैं। हम किसी को गलत और किसी को सही नहीं कह सकते, हां, पर उनमें कुछ नियम सामान्य होते हैं जो मैं आपको आगे बताऊंगा। तो चलिए, आइए कुछ ध्यान करने की विधियों के बारे में पता लगाते हैं।

१. सामान्य तो उपयोग में ली जाने वाली विधि है जिसमें हमें शांत जगह पर जाकर जमीन पर पालथी लगाकर बैठ जाना होता है। उस समय हमारी कमर बिल्कुल सीधी होनी चाहिए और हमारे दोनों हाथ हमारे घुटनों पर योगिक मुद्रा में होने चाहिए। उस दौरान आपको आंखें बंद कर लेनी हैं और ३ से ४ लंबी सांस भरनी हैं। उसके बाद जब अपना दिमाग शांत हो जाए, तो आपको अपनी दोनों आंखों के बीच के ध्यान केंद्र बिंदु पर पूरे ध्यान के साथ अपना पूरा ध्यान होना चाहिए। वहीं पर लगाना है। शुरुआत में दिक्कत हो सकती है, उस समय आपको अनेक विचार आ सकते हैं और धीरे-धीरे सब सही हो जाएगा और वही एक जगह पर ध्यान को टिकाए रखना ऐसे जितनी देर तक आप बैठ सकते हैं, बैठना है। और यह क्रिया नित्य करनी है।

२. कई लोगों का कहना है कि ध्यान करने के लिए कोई निश्चित अवस्था की जरूरत नहीं है। ध्यान आप खड़े-खड़े, सोते सोते भी कर सकते हैं। ऐसा कहना है, पर क्या यह सही विधि है या नहीं, वह नहीं पता। कई लोग कहते हैं कि जब आप किसी कार्य को पूरे ध्यान के साथ करते हैं, तो वह भी एक ध्यान का ही प्रकार है।

उदाहरण के तौर पर, जब आपको प्यास लगी है, तब पानी पीते समय आपका ध्यान सिर्फ पानी पीने पर ही होना चाहिए। उसे समय आपके दिमाग में पानी पीने के बाद क्या करेंगे, या फिर पानी पीने के पहले जो-जो कार्य किए थे भूतकाल में, उनके बारे में क्षणिक भी विचार नहीं आना चाहिए। और सिर्फ पानी पीने पर ही ध्यान लगाना है। ऐसे हर कार्य को इसी तरह करना है। कई लोग इससे भी ध्यान का एक प्रकार बताते हैं।

3.पहले प्रकार में जो बताया गया, उसमें हम दोनों आंखों के बीच के केंद्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, तो उसकी जगह पर आप अपनी सांसों पर भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। अपने अंदर हो रही गतिविधियों को भी ध्यान से शांत होकर अनुभव कर सकते हैं, इसे भी एक ध्यान का ही प्रकार कहा जाता है।

ध्यान यूनिक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें आपको किसी एक विचार पर किसी एक वस्तु के प्रति एक होने की भावना जगाने को ही ध्यान कहते हैं। आपका ध्यान किसी भी विचार पर या किसी भी जगह, किसी भी वस्तु या किसी भी कार्य में कितनी देर तक टिक पाता है, उसे ही ध्यान कहते हैं।

ध्यान कब करना चाहिए और कब नहीं करना चाहिए।

आपको यह पढ़कर आपसे यह होगा कि कुछ ऐसे भी समय है जब आपको ध्यान नहीं करना चाहिए। हां, जब हम दुखी होते हैं और हमें आत्महत्या के विचार आ रहे होते हैं, हमें बार-बार खुद के प्रति नफरत या किसी और के प्रति नफरत इत्यादि के विचार आ रहे होते हैं, उस समय हमें ध्यान नहीं करना चाहिए। क्योंकि उस समय जब हम ध्यान करते हैं, तो हमारे दिमाग में चल रहे विचार मजबूत बनते हैं, और यह हमारे लिए नुकसानदायक हो सकते हैं। इसीलिए, जब हम दुखी हैं, तब हमें ध्यान नहीं करना चाहिए। ऐसे समय में हमें उस कार्य को करना चाहिए, जिससे हमें खुशी मिले, और खुशमिजाज दोस्तों के साथ रहना चाहिए, जिससे हम दुख से बाहर निकलकर सुख की अनुभूति करें।

ध्यान लगाने का सबसे उत्तम समय वह होता है जब हम खुश होते हैं, क्योंकि ध्यान से हम मोक्ष को प्राप्त करते हैं। मोक्ष यानि परमात्मा परमेश्वर, जो अनंत आनंद से भरा हुआ है। जब हम दुखी होते हैं, तब हम संसार में सभी को बुरा मानने लगते हैं, किसी को अपना नहीं मानते हैं और ऐसे समय में ध्यान करना हमारे लिए नुकसानदायी हो सकता है। उसकी जगह, जब हम बहुत खुश होते हैं, यानी खुशमिजाज दिमाग हमारा फ्रेश होता है, तब हमें ध्यान करना चाहिए और उसी समय ध्यान घटित होने की संभावना बढ़ जाती है। इस समय किया जाने वाला ध्यान आपको बहुत लाभदाई साबित हो सकता है।

ध्यान के चमत्कारिक अनुभव:

  1. ध्यान एक रास्ता है जो हमें ईश्वर तक, यानी मोक्ष तक पहुंचाने का कार्य करता है, और मोक्ष एक अनंत आनंद है।
  2. रोज जीवन में ध्यान करने से आपके पारिवारिक संबंधों में सुधार देखने को मिलता है।
  3. जिन जिन व्यक्तियों को ओवरथिंकिंग की समस्या है, उनके लिए ध्यान एक कारगर इलाज साबित हो सकता है।
  4. जो व्यक्ति रोज ध्यान करता है, उसका दिमाग शांत रहता है और सही समय पर सही निर्णय ले सकता है।
  5. ध्यान करने से हमारा दिमाग के फंक्शन अच्छे से काम करते हैं और इसका प्रभाव हमारी बॉडी पर भी देखने को मिलता है।
  6. ध्यान से हमारे चेहरे की रौनक बढ़ती है और हमारे चेहरे पर तेज आता है।
  7. एकाग्रता बढ़ती है।
  8. चीजें लंबे समय तक याद रहने लगती हैं।
  9. गुस्सा कंट्रोल में आने लगता है।
  10. किसी भी कार्य में अपना १००% दे सकते हैं।

सारांश:

ध्यान हमें वर्तमान में जीना सिखाता है और हमारे जीवन में घटित हो रही घटनाओं का लुफ्त लेना सिखाता है। ध्यान हमें परमात्मा की और ले जाता है। ध्यान से हम वह सब कुछ हासिल कर सकते हैं जो हम सोच सकते हैं। ध्यान में अनंत आनंद की ओर ले जाता है।

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