प्रशंसा और खुशामद इन दोनों में काफी अंतर है। कई लोग प्रशंसा करते हैं, तो कई लोग खुशामद करते हैं। तो आज हम इन दोनों के बीच का तफावत जानने की कोशिश करेंगे और हमें इन दोनों में से किसी अपनाना चाहिए वह भी देखेंगे।
प्रशंसा
प्रशंसा उसे कहते हैं। जो व्यक्ति के किसी कार्य को सच्चाई के साथ जोड़ती हो। प्रशंसा हमेशा सच्ची की जाती है और प्रशंसा करना कोई बुरी बात नहीं है। जब भी आपको कभी भी मौका मिले तो किसी की अच्छे गुणों की तारीफ करनी चाहिए और उन्हें अच्छे कार्य के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। हम जब किसी की प्रशंसा करते हैं। तब उस व्यक्ति को उस क्षेत्र के लिए प्रशंसा मिली है। उसे उस क्षेत्र में कार्य करने का प्रोत्साहन मिलता है।
प्रशंसा हमेशा सचीही करनी चाहिए। जिससे उस व्यक्ति के जीवन में सुधार आए और उसे प्रगति के मार्ग की ओर ले जाएं। वह अपने जीवन में आगे बढ़े।
खुशामद
खुशामद वह हमेशा झूठी होती है। वैसे तो कई लोग पूरे दिन किसी ना किसी की खुशामद करते रहते हैं। वैसे लोग कभी भी अपने जीवन में सफल नहीं हो सकते। क्योंकि, लोगों को सच्ची प्रशंसा सुनने और खुशामद सुनाने के बीच का तफावत जल्द ही समझ आ जाता है। इसीलिए खुशामद करने वाले लोग शायद कुछ देर के लिए चल भी जाए पर लंबे देर के लिए नहीं चल पाते। लोग उन्हें इग्नोर करने लगते हैं। उन्हें मतलबी समझते हैं इसीलिए किसी की खुशामद करना बंद कर दीजिए।
खुशामद और प्रशंसा
प्रशंसा और खुशामद में बारिक की तफावत होता है। प्रशंसा हमेशा सच्च की ही होती है और जब खुशामद झूठी होती है। हमें हमेशा किसी ना की प्रशंसा करनी चाहिए। परंतु खुशामद नहीं। जब आप किसी व्यक्ति को किसी कार्य के लिए उसकी प्रशंसा करते हैं तब उस व्यक्ति को उस कार्य को करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। वह अपने आप पर गर्व महसूस करता है।
जब भी आप किसी की प्रशंसा करते हैं। तब वह व्यक्ति को जब आप कभी भी किसी कार्य को करने के लिए कहते हैं। तब वह व्यक्ति आपको मना नहीं कर पाएगा। हमेशा प्रशंसा सच्ची करनी चाहिए और प्रशंसा करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। बस, शर्त इतनी है की प्रशंसा सच्ची होनी चाहिए।