एलोपैथी में बीमारी के प्रकार
आमतौर पर हमें या हमारे आसपास देखने वाली सारी बीमारियों को एलोपैथी में दो हिस्सों में विभाजित किया गया है। एलोपैथी के अनुसार कोई भी बीमारी सामान्यतः इन दोनों प्रकारों में से किसी एक प्रकार में जरूर आती है। आज हम इन दो प्रकारों के बारे में खबर लेने की कोशिश करेंगे और इनमें आने वाली बीमारियों के बारे में थोड़ी विस्तृत जानकारी लेने की कोशिश करेंगे।
बीमारियों के दो प्रकार
1.नॉर्मल डिजीज 2.कॉनिकल डिजीज
नॉर्मल डिजीज
यह सामान्यतः ऐसी बीमारियाँ होती हैं जो स्वयं के लिए होती हैं, जैसे कि कोई 4 दिन, कोई 7 दिन, 2 दिन, 3 दिन ऐसे ही। ये बीमारियाँ हमारे शरीर को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाती हैं, परंतु ये टेम्परेरी बैंक जरूर देती हैं। इन बीमारियों में सामान्यतः सर्दी, खांसी, बुखार, सिर का दर्द जैसी छोटी-मोटी बीमारियाँ होती हैं, जो हमारे शरीर में इतना प्रभाव नहीं डालती। यह बीमारी आपकी शरीर में आती है और कुछ दिनों के बाद आप फिर से पहले की तरह हो जाते हैं, जिससे ज्यादा नुकसान नहीं होता है। हमारे शरीर को।
कॉनिकल डिजीज
यह ऐसी बीमारियाँ हैं जो व्यक्ति के शरीर को बहुत ही बुरी हद तक प्रभावित करती हैं और शायद इस प्रकार की बीमारी में व्यक्ति की मौत तक हो सकती है। यह बीमारियाँ की काल अवधि लंबे समय की होती है जिसमें यह हमारे शरीर को बहुत ही नुकसान पहुंचाती हैं, इस कदर नुकसान पहुंचाती हैं कि हमारा शरीर कभी-कभी खुद का ही विरोध हो जाता है। इन प्रकार की बीमारियों में लक्षण काफी वक्त के बाद देखने को मिलते हैं।
इस प्रकार की बीमारियों में टीबी, कैंसर, एड्स ऐसी बड़ी बीमारियाँ होती हैं, जिनका इलाज या तो प्रबुद्ध ही नहीं है या फिर उपलब्ध है तो सिर्फ राहत का कार्य करता है, न की बीमारी को जड़ से खत्म करता है।
एलोपैथी में इन दोनों प्रकार की बीमारियों में नॉर्मल डिजीज हमारे शरीर को बहुत ही कम नुकसान पहुंचाते हैं और जिस छोटे पायदान पर यह नुकसान पहुंचाती है, वहां से हमारा शरीर बहुत ही जल्द रिकवरी कर लेता है, पर क्रॉनिकल डिजीज में ऐसा नहीं होता। वह हमारे शरीर में लंबे समय तक प्रभावी रहते हैं और इन प्रकार की बीमारियाँ कहीं तो लाइलाज हैं, जिन का इलाज अभी तक खोजा ही नहीं गया है। हाँ, उनमें जरूर राहत पाई जा सकती है, पर उनका संपूर्ण इलाज संभव नहीं है एलोपैथी के हिसाब से।
क्रॉनिक डिजीज उन्हीं को होने की संभावना ज्यादा है जो अल्कोहल का सेवन करते हैं, जिनकी डेली एक्टिविटी बहुत ही कम होती है, जो बाहर का खाना बहुत खाते हैं, उनको ही बहुत ज्यादा संभावना है कि क्रॉनिक डिजीज होगी, और यह डिजीज में सिम्टम्स पांच से छह महीने बाद दिखते हैं, जबकि नॉर्मल डिजीज में वायरस, बैक्टीरिया इत्यादि के कारण नॉर्मल डिजीज सोने की संभावना ज्यादा है, जिसकी सिम्पटम्स कम 2 से 3 दिन में दिखते हैं।