हम बीमार क्यों होते हैं?
आयुर्वेद के हिसाब से हमारा शरीर पंचमहाभूतों से बना हुआ है। ये पंचमहाभूत पृथ्वी, हवा, पानी, अग्नि और आकाश हैं। इन पांच महाभूतों के मिलने से तीन दोष बनते हैं। इन तीनों दोषों का नाम हैं वात, पित्त और कफ। आयुर्वेद के हिसाब से यदि इन तीनों की मात्रा अधिक या कम होती है, तो हमारे शरीर में बीमारी का जन्म होता है। इन तीनों दोषों की वजह से हमारा सारा शरीर कार्यरत है और ये ही तीनों दोष हमें बीमार भी पड़ते हैं। आज हम इन तीनों की थोड़ी सी मात्रा में जानकारी लेने की कोशिश करेंगे।
बीमारी होने के मुख्य कारण:
दोष बिगड़ने के कारण:
आयुर्वेद के हिसाब से हमारे शरीर में तीन प्रकार के दोष होते हैं, जिनके कारण हमारा शरीर कार्यरत होता है। इन तीनों दोषों का नाम हैं वात, पित्त और कफ। यदि इन तीनों का संतुलन हिल जाता है, तो हम बीमार होने के चांसेस बढ़ जाते हैं। संतुलन बिगड़ने के कई कारण हो सकते हैं।
दोषो के तीन प्रकार
1 वात
2 पीत
3 कफ
1 वात दोष
वात दोष के प्रकार
- प्राण वात
- समान वात
- उदान वात
- अपान वात
- व्यान वात
यदि हमारे शरीर में वात दो महा भूतों से बना हुआ है इन दो महा भूतों में हवा और पृथ्वी शामिल है यदि वात का संतुलन बिगड़ जाए यानी हमारे शरीर मैं वात बढ़ जाए या कम हो जाए ऐसा होने से हमारे शरीर में कई बीमारियां हो सकती हैं और वात का बढ़ना और कम होने के कई कारण हो सकते हैं
2 पित्त दोष
पित्त के प्रकार :
- पाचक पित्त
- रज्जक पित्त
- साधक पित्त
- आलोचक पित्त
- भ्राजक पित्त
पित्त पानी और अग्नि महाभूत से बना होता है पिता हमारे शरीर में कई ऐसे कार्यों में सहयोग देता है जो हमारे नैतिक कार्य जीवन के यदि हमारे शरीर में पित्त की मात्रा अधिक या कम हो जाए तो इससे हमें पित्त दोष से होने वाली बीमारियां हो सकती हैं और पित्त दोष बढ़ने या कम होने के भी कई अलग-अलग कारण हो सकते हैं
3 कफ दोष
कफ दोष के प्रकार :
- क्लेदक
- अवलम्बक
- बोधक
- तर्पक
- श्लेषक
हमारे शरीर में जितने जरूरी वात दोष और पित्त दोष है उतना ही जरूरी कफ दोष है इसका भी अहम रोल है हमारे शरीर में यदि वात दोष और पित्त दोष की तरह कफ दोष भी अधिक हो जाए या कम हो जाने से हमारे शरीर में अनेकों प्रकार की बीमारियां हो सकती है इसीलिए इन तीनों दोषों को संतुलन में रखना बहुत ही जरूरी है
दोष बढ़ने के मुख्य कारण
अयोग्य भोजन
हमारे शरीर को पंचमहाभूतिक तत्वों से बना होता है, जिसके लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा हम खाने-पीने के द्वारा प्राप्त करते हैं। यदि हम अनुपयोगी और बासी भोजन, जैसे पैकेट फूड या फास्ट फूड, खाते हैं, जो हमारे शरीर के आहारिक आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं होते, तो हमारे शरीर को उससे प्राप्त होने वाली ऊर्जा को पचाने में कठिनाई होती है। इससे हमारे शरीर के दोषों का संतुलन असंतुलित हो जाता है।
कसरत ना करना
जो लोग पूरे दिन बैठे रहते हैं, जिनका काम स्थानिक होता है और जो शारीरिक श्रम नहीं करते हैं, उनमें अवश्य बीमारी का आगमन हो सकता है। कसरत करने से हमारे शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा उपजती है और हमारे शरीर कार्यरत रहता है। कसरत की अनुपस्थिति से हमारे शरीर में दोषों का संतुलन विकृत होता है और यह हमें बीमार बना सकता है।
अधिक मात्रा में चिंता करना।
जी हां, अगर आप किसी बात की अधिक मात्रा में चिंता करते हैं तो वह चिंता आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकती है। चिंता, अगर कुछ समय के लिए ही हो, तो कोई समस्या नहीं है, परंतु यदि वह चिंता लंबे समय तक बनी रहे, तो वह बीमारी का कारण बनती है, क्योंकि चिंता से हमारे शरीर में कुछ ऐसे केमिकल रिलीज होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, और इससे हमारे शरीर की दैनिक क्रियाओं में बाधा उत्पन्न होती है और त्रिदोष से संबंधित समस्या उत्पन्न होती है।
योग्य पर्यावरण में ना रहना।
यह भी हमारी बीमार होने के कारणों में से एक कारण है। जो व्यक्ति गांव में शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में रहता है, वह व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। और जो व्यक्ति शहर में रहता है, जहां पर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां हैं, जहां की हवा में केमिकल मिले हुए हैं और वह उनके स्वासन द्वारा उसके शरीर के अंदर पहुंचते हैं, ऐसे व्यक्ति का स्वास्थ्य इन दोनों के तुलना में अच्छा होता है। गांव में रहने वाले व्यक्ति को बीमार होने के चांस शहर में रहने वाले लोगों से बहुत ही कम होते हैं। इसीलिए, स्वस्थ रहने के लिए आपके आसपास का वातावरण, अर्थात् पर्यावरण, भी योग्य होना बहुत ही जरूरी है।
सृष्टि के नियम के विरुद्ध कार्य कर ना।
नेहा, अगर आप सृष्टि के नियम के विरुद्ध कार्य करते हैं, तो भी आपके शरीर में दोष और संतुलित हो जाते हैं और वह आपकी शरीर में बीमारियां उत्पन्न करते हैं। जैसे उदाहरण से समझे तो, प्रकृति के नियम अनुसार हमें रात को सोना चाहिए और दिन में कार्य करना चाहिए, पर आज के मॉडर्न समय में हम इससे विपरीत ही करते हैं। हम रात को देर तक जगे रहते हैं और बाद में सुबह जल्दी उठने की वजह से दोपहर तक सोते रहते हैं। और यही प्रकृति के विरुद्ध के कार्य हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक साबित होते हैं। यह तो मैंने एक ही उदाहरण दिया है, ऐसे तो अनेकों दुसरे उदाहरण हैं। इसीलिए, हमें प्रकृति के विरुद्ध के कार्य नहीं करना चाहिए, वर्ना हमारे शरीर में त्रिदोष में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है और वह हमारे बीमारियों का कारण बनता है।
आयुर्वेद के हिसाब से, पर दिए गए कारणों के कारण भी हमारे स्वास्थ्य में बीमारियां उत्पन्न हो सकती हैं, अर्थात् हम बीमार पड़ सकते हैं। हो सके तो, उन कारणों से बचने की कोशिश करें और ऐसा आहार और ऐसे वातावरण में रहें जिसके कारण हमारे शरीर में त्रिदोष संतुलित बने रहें।
धन्यवाद।