मनुष्य में प्रकृति के तीन गुण क्या है?
हम मनुष्य में तीन प्रकार के गुण पाए जाते हैं। इन तीनों गुणों को राजसिक, तामसिक और सात्विक कहा जाता है। ये तीनों गुण मनुष्य में पाए जाते हैं, परंतु इनमें से कोई एक अधिक मात्रा में होता है और जो अधिक मात्रा में होता है, वही उस व्यक्ति की प्रकृति कहलाती है। यानी यदि किसी व्यक्ति में राजसिक और तामसिक गुणों के लक्षणों से ज्यादा सात्विक गुणों के लक्षण पाए जाते हैं, तो वह व्यक्ति सात्विक है। इस व्यक्ति में राजसिक और तामसिक गुण अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, वह व्यक्ति राजसिक और तामसिक प्रकृति वाले कहे जाते हैं। इन तीनों के लक्षण अलग-अलग होते हैं और जिनमें इनका प्रभाव होता है, वह व्यक्ति का व्यक्तित्व भी अलग-अलग होता है।
तो चलिए, आइए जानते हैं कि व्यक्ति में कौन सा गुण अधिक मात्रा में है, वह किस प्रकृति का है। इसका पता लगाया जा सकता है जैसे कि उसकी पसंद क्या है, वह कैसा खाना खाता है, उसका व्यवहार कैसा है, उसकी रानी करणी कैसी है, उसकी दिनचर्या कैसी है। इन सब बातों से उसका पता लगाया जा सकता है। ये तीनों गुणों के अलग-अलग लक्षण होते हैं और इन लक्षणों के आधार पर हम किसी भी व्यक्ति की प्रकृति निर्धारित कर सकते हैं।
●मनुष्य की तीन प्रकार की प्रकृतिया:
1 सात्विक
2 राजसिक
3 तामसिक
1. सात्विक प्रकृति(सत्व)
जो भी व्यक्ति सात्विक प्रवृत्ति का होता है, वह व्यक्ति बहुत ही ऊर्जावान और शांत प्रकृति का होता है। उसका व्यवहार दूसरों के साथ बहुत ही शांतिपूर्ण होता हैं। वह व्यक्ति शांत मनोवृत्ति वाला होता है और कभी भी दूसरों का बुरा नहीं कर सकता। वह धैर्यवान होता है और उसे बहुत ही कम मात्रा में गुस्सा आता है। वह हमेशा दूसरों का भला सोचता है और उसमें किसी भी प्रकार का कपट नहीं होता। वह व्यक्ति धार्मिक होता है और योग इत्यादि का नाम से बहुत पसंद होता है।
लक्षण
1. सत्यवाद (Truthfulness): सात्विक मनुष्य सत्य का पालन करते हैं और झूठ बोलने से बचते हैं। वे अपने वचनों के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं और दूसरों को भी सत्य बोलने की प्रेरणा देते हैं।
2. दयालुता (Compassion): सात्विक मनुष्य दूसरों के प्रति दया और करुणा भाव रखते हैं। उन्हें दूसरों के दुःख का आदर्श होता है और वे सेवा का भावना समझते हैं।
3. अहिंसा (Non-violence): सात्विक मनुष्य हिंसा से परहेज करते हैं। वे दूसरों के प्रति शान्तिपूर्वक बर्ताव करते हैं और किसी भी प्राणी को नुकसान पहुंचाने से बचते हैं।
4. तपस्या (Austerity): सात्विक मनुष्य तपस्या का अभ्यास करते हैं। वे अपने इंद्रियों का नियंत्रण करते हैं और स्वाध्याय, मेधा और आत्मसंयम की प्राथमिकता देते हैं।
5. शान्ति (Peacefulness): सात्विक मनुष्य अंतर्निहित शांति के साथ रहते हैं। उन्हें भीतरी शांति की अनुभूति होती है और वे अपने चित्त को शांत और स्थिर रखने का प्रयास करते हैं।
6. निर्मलता (Purity): सात्विक मनुष्य मन, वचन और कर्म में पवित्रता बनाए रखते हैं। वे अशुद्ध विचारों, आक्रोश और कपट से दूर रहते हैं और एक निष्ठावान और प्रामाणिक जीवन जीते हैं।
2. राजसिक प्रकृति(रजस)
जिस व्यक्ति की प्रकृति राजसिक होती है, जैसे कि लोग बहुत ही गुस्से वाले होते हैं, वह हर छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करते हैं। उस समय उन पर से खुद का कंट्रोल हो जाता है। इस प्रकृति वाले व्यक्तियों को मसालेदार खाना खाना बहुत पसंद होता है। ऐसे लोग जब बात खुद पर आ जाती है, तो किसी और का नहीं देखते। ऐसे लोग दूसरों को दिखाने के लिए कार्य करते हैं, साथ ही इनमें अहंकार भी बहुत होता है।
लक्षण
1. आक्रामकता: राजसिक व्यक्तित्व वाले लोगों की एक मुख्य पहचान आक्रामकता होती है। वे आपातकालीन और स्पष्ट रूप से प्रभावित करने के लिए भयंकर तरीकों का उपयोग कर सकते हैं।
2. स्वार्थपरता: राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग अपने हित को महत्व देते हैं और अक्सर दूसरों की जरूरतों को नजरअंदाज करते हैं। उन्हें अपनी स्वार्थपरता और उपयोगिता के लिए प्रमुखता देने की आवश्यकता होती है।
3. ताकत का प्रदर्शन: राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग अपनी ताकत और सत्ता का प्रदर्शन करने में रुचि रखते हैं। वे अक्सर अपनी सत्ता को दिखाने के लिए और अन्य लोगों को अधीन करने के लिए प्रयास करते हैं।
4. अहंकार: राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग अपने अहंकार को महत्व देते हैं और अक्सर अन्य लोगों से ऊँचा दिखने की कोशिश करते हैं। वे खुद को सबसे अच्छा, सबसे बढ़िया और सबसे समझदार समझते हैं।
5. अनुकरण करने की क्षमता: राजसिक व्यक्तित्व वाले लोगों की अनुकरण करने की क्षमता होती है। वे अक्सर अपने आसपास के लोगों के आदर्शों, विचारों और भावनाओं का अनुकरण करने की कोशिश करते हैं।
6. धृष्टता: राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग धृष्ट होते हैं और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संकल्पित रहते हैं। वे विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करने की क्षमता रखते हैं और हार नहीं मानते।
3. तामसिक प्रकृति(तमस)
ऐसे लोग बहुत ही आलसी होते हैं। इनके आसपास का माहौल भी नकारात्मक सोच वाला होता है और हमेशा किसी न किसी को नीचा दिखाने या फिर किसी को हानि पहुंचाने की सोच रखते हैं। ऐसे लोग बदलाव का मौका मिलने पर भी कभी खुद को नहीं बदलते हैं और दूसरों को दुख देने में बहुत मजा आता है। ऐसे लोग सत्य और असत्य में से हमेशा असत्य को चुनते हैं। उनका भोजन मांसाहार, मदिरा, इत्यादि होता है और उनमें हवस कूट-कूट कर भरी होती है। उनमें एक राक्षस में हूँ, जो जो होते हैं, वह सभी गुण उनमें देखने को मिलते हैं।
लक्षण
1.आलस्य: तामसिक व्यक्तित्व वाले लोग आलस्यपूर्ण होते हैं और काम करने में उदासीनता दिखाते हैं। उन्हें अप्रवृत्ति की अपेक्षा अधिक होती है और काम को टालते रहते हैं।
2. निरंतर निंदा: तामसिक व्यक्तित्व वाले लोग अक्सर दूसरों को निंदा और नकारात्मक टिप्पणियों का उपयोग करते हैं। उन्हें आपत्तिजनक बातों को खोजने और दूसरों को नुकसान पहुंचाने में रुचि होती है।
3. अव्यवस्था: तामसिक व्यक्तित्व वाले लोग अप्रवृत्ति की स्थिति में रहते हैं और अनुशासनहीनता का पालन नहीं करते हैं। उनकी जीवनशैली अस्तव्यस्त और अव्यवस्थित होती है।
4. आध्यात्मिकता की कमी: तामसिक व्यक्तित्व वाले लोग आध्यात्मिक अनुभवों की कमी महसूस करते हैं और धार्मिक या मानसिक गतिविधियों में रुचि नहीं रखते हैं।
5. अवस्थाईकरण: तामसिक व्यक्तित्व वाले लोग अपेक्षाकृत अधिक स्थायित्व दिखाते हैं और स्वयं को उन्नत करने और परिवर्तन करने की जगह अपेक्षाकृत स्थिति को बरकरार रखने की प्राथमिकता देते हैं।
●कुछ कार्य और कुछ आहार विहार में परिवर्तन करके हम हमारी प्रकृति बदल सकते हैं। हमें सत्य की ओर चलना चाहिए, और जो भी व्यक्ति सत्य और शुद्ध आहार, विचार और वाणी में इन सभी नियमों का पालन करता है, वह व्यक्ति सात्विक होता है। निश्चित रूप से वह व्यक्ति मोक्ष की ओर आगे बढ़ता है।