व्यक्ति की क्षमताएं।

 व्यक्ति की क्षमताएं

      एक इंसान चाहे वह पुरुष हो या महिला या फिर कोई बच्चा ही क्यों ना हो, उसकी क्षमता क्या है? आप किस हद तक सोच सकते हो कि व्यक्ति की क्षमता यह है और वह यह कर सकता है, लेकिन व्यक्ति उस कार्य को नहीं कर सकता है। इसका उत्तर यह है कि इंसान की क्षमताएं उतनी ही हैं, जितनी उस इंसान की सोचने की क्षमता होती है।

विचार

आपने और मैंने कहीं-ना-कहीं पढ़ा हुआ है और कहीं-ना-कहीं सुना हुआ है कि कोई भी इंसान उसका व्यक्तित्व उसकी प्रार्थना लेती उसके विचारों से ही उद्भव होती है, यानी विचार ही इंसान को या उसके व्यक्तित्व को निर्मित करते हैं। यह बात किस हद तक सही है? क्या आप इस बात में विश्वास रखते हैं कि इंसान उसके विचारों से ही बनता है? हां, यह बात जरूर है कि विचार किस से बनते हैं एक अलग बात है और यह बात भी इंसान के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भाग होते हैं।

इंसान की सोच पर विचार पर कई घटक का असर देखने को मिलता है। इन कटक को में हम किस वातावरण में रह रहे हैं, किन लोगों के साथ रह रहे हैं, हम किस समाज से आते हैं, हम क्या देखते हैं, हम क्या पढ़ते हैं, हम किने सुनाते हैं। ऐसे कई महत्वपूर्ण घटक होते हैं जो हमारी विचारधारा को निर्मित करते हैं। यानी, हमारे विचार को मजबूत आकार देते हैं और यही सब हमारे व्यक्तित्व निर्माण, हमारे मनुष्य के सोचने की समझने की शक्ति सब में अपना योगदान देते हैं।

मनुष्य की क्षमता:

आप मानें या न मानें, पर यह बात शत प्रतिशत सत्य है कि आप जहां तक सोच सकते हैं, जहां तक आपकी विचारधारा कार्य कर सकती है, उस हद तक ही आप अपने आप को कार्यक्रम बना सकते हो। अगर आपकी विचारधारा निचले स्तर की है, तो आप उत्तर के कार्य का कर सकते हो, उसके ऊपर के स्तर के कार्य करने के बारे में आप कभी सोच भी नहीं सकते, करने की बात तो दूर की है। यह बात सत्य है कि व्यक्ति उस हद तक कार्य कर सकता है, जिस हद तक वह सोच सकता है। व्यक्ति क्षमताओं की कोई सीमा नहीं है, व्यक्ति किसी प्रकार के बंधनों से बंधा नहीं है। व्यक्ति जिस हद तक खुद में या किसी कार्य को करने में इच्छा रखता है, उस हद तक ही वह कार्य या और कुछ करने की क्षमता रखता है।

जो लोग आज के समय में विश्व की उच्च कोटि में स्थान प्राप्त कर बैठे हैं, वह लोग वहां पहुंचने से पहले उस उच्च कोटि के विचार को अपने मस्तिष्क में स्थान दिया। बाद में जाकर ही वे लोग उस जगह तक पहुंच सके, यदि वे उच्च स्थान पर जाने की कल्पना नहीं करते थे तो वे आज तक वहां नहीं पहुंच पाए होंगे। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि सिर्फ सोचने से सब कुछ हो जाएगा, परंतु यह सत्य है कि सोचने से हमारा दिमाग हमें उस दिशा में ले जाता है जो हमारे लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करती है। इसलिए, हमें अपने सपनों को सोचने के साथ-साथ पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होती है।

सारांश:

हमारी संस्कृति में हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इंसान वह सब कर सकता है जो वह सोच सकता है, पर उसे मेहनत करनी पड़ती है ताकि वह अपनी सोच को हकीकत में परिवर्तित कर सके। लेकिन एक बात भी है कि जो इंसान किसी चीज को सोच नहीं सकता या फिर कभी नहीं सोचता, उस बात को वह अपने जीवन भर करने की कोशिश नहीं कर सकता।

उदाहरण

जो व्यक्ति मुक्ति यानी मोक्ष के बारे में कभी सोचा तक नहीं है, उस व्यक्ति को पता भी नहीं है कि मोक्ष क्या है। वह व्यक्ति कभी मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता। उससे पहले उसे यह विचार उद्भव होना चाहिए कि मोक्ष क्या है, और वह कैसे प्राप्त किया जा सकता है। अगर उसे यह विचार नहीं आते हैं तो वह मोक्ष को प्राप्त करने में कभी सफल नहीं हो सकता।

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