दुख का कारण | Dukh Ka Mul Karan |

दुख का कारण 

        दुख, पीड़ा, दर्द, असहनीय दर्द- ये सब आखिर किस पर निर्भर होते हैं? क्या ये स्वनिर्मित होते हैं या फिर दूसरों द्वारा निर्मित किए जाते हैं? दुख ऐसी भावात्मक या अनुभवजन्य वस्तु होती है, जिसे वस्तु नहीं कहा जा सकता। ये भाव सिर्फ अनुभव करने से ही समझ में आते हैं। आज के समय में विश्व में कोई भी ऐसा प्राणी नहीं होगा जो कभी दुखी नहीं हुआ हो। ये सामान्य बात है और हमेशा रहेगी।



दुख का कारण | Dukh Ka Mul Karan |



दुख के प्रकार

दुखों के दो प्रकार है एक है स्वयं निर्मित दुख और दूसरा है दूसरों के द्वारा दिए गए दुख

स्वयं निर्मित दुख

दुख के इस प्रकार में व्यक्ति खुद ही दुखी होता है। यहां मैं यह नहीं कहना चाहता कि व्यक्ति के पास दुखी होने का कोई कारण नहीं होता, पर इतना जरूर कहना चाहता हूं कि इस प्रकार के दुख में अगर व्यक्ति चाहे तो खुद को खुश रख सकता है। इस प्रकार के दुख में इंसान खुद को ही दुखी करता है, यानी दुख को उत्पन्न करता है। व्यक्ति के द्वारा निर्मित किया हुआ दुख है।

व्यक्ति जब एकांत अनुभव करता है, तब कई महान व्यक्ति इस एकांत में अपने मन को शांत रखते हुए उस पर अपना आधिपत्य जमाए रखते हैं, पर सामान्य व्यक्ति एकांत के समय में अपने विचारों पर नियंत्रण नहीं लगा सकता और ये विचार एक ऐसी राह पर आगे बढ़ते जाते हैं, जहां पर इंसान चिंता को आमंत्रित करता है और यह चिंता सतत उसके दिमाग को खाती है, और यही चिंता आगे जाकर उस इंसान के दुख का कारण बनती है। इसीलिए कहा जाता है कि चिंता चिता समान है, अगर व्यक्ति चाहे तो अपने विचारों को सही दिशा में मोड़कर एक अच्छे कार्य की ओर ले जा सकता है।

स्वयं के द्वारा निर्मित दुखों का कारण हमारा अपना मन होता है। अगर ऐसा नहीं होता, तो कोई दो इंसान एक ही स्थान पर एक ही समय में एक जैसी परिस्थिति में रहकर भी कोई एक सुख की अनुभूति करेगा, और दूसरा दुख की अनुभूति करेगा। अंततः, ऐसा क्यों होता है? इसके लिए हमारा दिमाग, अर्थात हमारे विचार, जिम्मेवार नहीं होते हैं। तो कौन होता है और विचार किसी एक चीज़ के कारण नहीं बनते? इसके लिए कई घटनाएं जिम्मेवार होती हैं और कई परिस्थितियां जिम्मेवार होती हैं।

दूसरों के द्वारा दिए गए दुख

इस प्रकार के दुखों में हमारे साथ रहने वाले लोग, समाज कोई जाति या कोई राष्ट्र के लोग नहीं होते हैं। इसमें से कई लोग जो हमारे साथ रहते हैं, वे लोग कई बार जाने-अनजाने में हमें दुख पहुंचाते हैं। यह दुख कई बार शारीरिक रूप में होता है, और कई बार मानसिक रूप में। इस पर हम सदा प्रतिशत नियंत्रण नहीं कर सकते हैं, अधिकांश समय में हम इसे हद तक नियंत्रित कर सकते हैं। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियां निर्मित होती हैं कि हम उसमें कुछ भी नहीं कर सकते। इस प्रकार के दुख को दूसरों के द्वारा दिए गए दुख की कगार में गिना जाता है।

दुख से बाहर कैसे निकले

कई बार हम इस हद तक दुखी हो जाते हैं कि जीने की आशा ही छोड़ देते हैं और जो भी लोग हमारे आस पास रहते हैं, उन सबको हम एक ही प्रकार के यानी सब बुरे इंसान हैं ऐसा ही सोच लेते हैं, पर हकीकत इससे विपरीत है, यानी सब लोग अच्छे भी नहीं हैं और सभी लोग बुरे भी नहीं हैं। कई ऐसे भी लोग होते हैं जो बुरे होते हैं, तो उन से विपरीत कई ऐसे भी लोग होते हैं जो अच्छे लोग होते हैं। पहले तो हमें हमारे साथ कैसे व्यक्ति है, उसके बारे में जानना है। हमें अगर दुख से बाहर निकलना है तो हमें एक अच्छे इंसान के साथ रहना चाहिए, क्योंकि बुरा इंसान आपको और दुखी करने की कोशिश करेगा और हमेशा अपना ही फायदा सोचेगा।

कहीं ऐसे भी दुख होते हैं जिनमें से निकलने के कोई उपाय नहीं होते, उनका सिर्फ एक ही उपाय होता है और वह है समय। समय हर मर्ज की दवा होता है, इसलिए कई बातें समय पर छोड़ देनी चाहिए।

जो दुख हमारे विचारों के कारण उद्भव हो रहा है, उनको दूर करने के लिए आपको एक पॉजिटिव वातावरण निर्माण करने की आवश्यकता होगी। उसके लिए आपको आपके दोस्तों और आपके परिवार के साथ मिलकर समय बिताना होगा। आपको कभी अकेला नहीं रहना चाहिए, क्योंकि जब जब आप अकेले रहेंगे, तब तब आप दोबारा उसी राह पर चल पड़ेंगे। इसलिए, अकेले नहीं रहना होगा।

आपको जिन कार्यों में रुचि हो वह कार्य करने  चाहिए, जैसे कि क्रिकेट, कोई गेम या फिल्म देखना। ऐसी बातें जिनमें आपकी रुचि हो, वह कार्य करना आपके लिए अच्छा रहेगा। वह आपको दुख से निकलने में मदद करेगा।

दुख से निकलने के लिए पहले आप समय लेकर सोचिए कि इसके लिए आप क्या क्या कर सकते हैं। अगर जो भी कार्य आप कर सकते हैं, वह कीजिए। अगर कोई कार्य नहीं है दुख से बाहर निकलने के लिए, तो फिर समय पर छोड़ दीजिए और निश्चिंत हो जाइए। क्योंकि आपके हाथ में कुछ नहीं है अभी, सिर्फ देखने के अलावा।

सारांश:

कई बार वास्तव में दुख ना होते हुए भी हम दुखी हो जाते हैं। इसके लिए हमारा मन जिम्मेवार है, हमारे विचार जिम्मेवार हैं। इसीलिए, आपको आपके विचारों को आपके मन को नियंत्रित करने के बारे में सोचना चाहिए। आपको ध्यान और मेडिटेशन की ओर एक कदम बढ़ाना चाहिए, जो आपको तीर रहने में मदद करेगा। धन्यवाद

Leave a comment