ईश्वर एक या अनेक ? ईश्वर एक है?

ईश्वर एक या अनेक ? ईश्वर एक है?

एक ईश्वर या अनेक

जो व्यक्ति आध्यात्मिकता की ओर चलता है, उस व्यक्ति के मन में यशवंत जरूर आता है कि क्या ईश्वर एक है या अनेक क्योंकि वह व्यक्ति जिस वातावरण में पला बढ़ा हुआ है और आज तक उसने जो जो देखा है और जो जो सुना है, उन सब में उसे अनेक ईश्वरों के बारे में भी जानकारी मिली है और उसने कई अलग-अलग पंथों को देखा है, जहां पर अलग-अलग ईश्वरों की पूजा की जाती है, जहां पर अलग-अलग तरह से पूजा अर्चना की जाती है।

वह व्यक्ति जिसने अपने आसपास अनेकों ईश्वरों को मानने वाले व्यक्तियों को देखा है, उसके लिए यह बात जानना बहुत जरूरी है कि वेदों के हिसाब से ईश्वर कितने हैं। वेदों में ईश्वर के बारे में क्या बताया गया है। वेदों को हमारे धर्म में सबसे पौराणिक ग्रंथों की मान्यता प्राप्त है और यह ग्रंथों में जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं। हमें क्या-क्या करना चाहिए और क्या क्या नहीं करना चाहिए के बारे में बताते हैं।

 तो आज हम वेदों के माध्यम से सत्य को खोजने का एक उत्तम कार्य करेंगे, जिससे हम जानेंगे कि अनेक ईश्वरों या फिर एक ही स्वर के बारे में वेद क्या कहते हैं।

अलग अलग धर्मों में

आज के समय में अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग ईश्वर की पूजा की जाती है। हिंदुओं में अनेक ईश्वरों की मान्यता है, और उनके अनुसार ईश्वर एक ही होता है, लेकिन उसके विभिन्न गुणों और स्वरूपों की पूजा की जाती है। वहीं, इस्लाम में अल्लाह की पूजा की जाती है और अल्लाह के सिवाए वे किसी अन्य ईश्वर को नहीं मानते। उनके अनुसार, हिंदू और क्रिश्चियन काफिर होते हैं। साईं धर्म में भी जीसस की पूजा की जाती है।

अगर सभी पंथ हमें ईश्वर की ओर ले जाते हैं तो फिर अलग-अलग अंतर रचने की जरूरत क्या पड़ती है? अगर सब नहीं ले जाते तो फिर हम यह कैसे निर्धारित करें कि कौन सही और कौन गलत है? ऐसे अनेक प्रश्न हमारे मन में घूमते रहते हैं, और जो भी व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करना चाहता है, यानी ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है, उसके मन में यह प्रश्न जरूर आना चाहिए।

वेदों में क्या लिखा है

वेदों की सबसे ईश्वर एक है, ना ही उसका सृजन हुआ है, ना ही उसका कभी विनाश हो सकता है। वह अनंत अनादि है, वह अकल्पनीय, निर्गुण, निरूप है। वही इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता है और सबको अपने कर्मों के हिसाब से फल देने वाला है। ऐसा नहीं है कि मैं ऐसे ही बात कर रहा हूं, मैं आपको इसके सबूत भी दूंगा, वह भी वेदों के द्वारा प्रमाणित करूंगा। यहाँ पर ऐसा नहीं है कि कोई छोटा ईश्वर है तो कोई बड़ा है, क्योंकि ईश्वर एक है। अगर अनेक होते तो यह बात सोचने पर जी के कौन बड़ा कौन छोटा। पर ईश्वर परमेश्वर एक ही है, हम लोग जो पूजा करते हैं वह उनके स्वरूपों की उनके गुणों की करते हैं और वह गुण भी उनके ही हैं, इसीलिए ईश्वर एक है।

वेदों का प्रमाण

(1) …भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।…

(यजुर्वेद-13/4)

उत्पन्न हुए संसार को रचने और पालन करने वाला एक है।

(2)….द्यावाभूमी जनयन्देव एकः ।।

(यजुर्वेद-17/19) (ऋग्वेद-10/81/3)

सूर्य और पृथिवी लोक को उत्पन्न करने वाला देव एक है।

(3)…..यो देवानां नामधा एक एव ..

(ऋग्वेद-10/81/03) (यजुर्वेद-17/27)

जो ईश्वर देवादि का अर्थात् सूर्य चंद्रमा पृथिवी आदि का नाम रखने वाला एक ही है।

(4)….एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति …

(अथर्ववेद-9/10/28) (ऋग्वेद-1/164/46 )

बुद्धिमान् एक ईश्वर को बहुत प्रकारों से, बहुत नामों से कहते हैं ।

(5)…एको विश्वस्य भुवनस्य राजा ॥

(ऋग्वेद-6/34/4)

संपूर्ण संसार का राजा एक ईश्वर है।

(6)… स एष एक एकवृदेक एव ॥

(अथर्ववेद-13/4/20)

 वह ईश्वर एक अद्वितीय ही है, उससे भिन्न दूसरा ईश्वर कोई भी नहीं।

(7)य एक इद्विदयते वसु …

(सामवेद-389)

जो एक ही है, धन को विशिष्ट रूप से देता है।

(8)…सम्राडेको विराजति ||

(सामवेद-1710)

एक अद्वितीय परमेश्वर चक्रवर्ती सम्राट होता हुआ विशेष रूप से शोभा पा रहा है।

(9)….भुवनस्य यस्पतिरेक एव …

(अथर्ववेद-2/2/1)

जो ब्रह्मांड का एक ही पालक, स्वामी है।

(10) अनेजदेकं मनसो जवीयो …

(यजुर्वेद-40/4)

परमात्मा एक है, अचल है, नहीं कंपने वाला है। मन से भी अधिक वेगवाला है।

ऊपर दिए गए वेदों के प्रमाण से यह साबित होता है कि ईश्वर एक ही है, ना कोई उससे बड़ा है। वही सर्वशक्तिमान है और वही पूजनीय है, यानी पूजा करने योग्य है। ईश्वर का कोई आकार नहीं है, कोई स्वरूप नहीं है और आदि अनंत है। उसका कोई अंतर नहीं है और ना ही उसका कोई प्रारंभ है। इसीलिए मुझे सबसे योग्य मनुष्य के पैरों में पढ़ने से अच्छा है, एक परमेश्वर परमात्मा की प्रार्थना, पूजा और अर्चना करनी चाहिए।

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