सत्व, रजस्, तमस् । | satva, Rajas, Tamas |

 सत्व, रजस्, तमस् । 

यह तीनों ही हमारा चरित्र का निर्माण करते हैं। किसी के अधिक और किसी के कम होने से ही हमारा चरित्र निर्माण होता है। इन तीनों में से कोई एक ऐसा होता है जिसका प्रभुत्व हमारे मैं अधिक देखने को मिलता है। कहा जाता है कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्रकार के जीवो को इन तीन प्रकार के भागों में बांटा जा सकता है। इन तीनों प्रकार से ही मनुष्य को भी विभाजित किया जाता है।

सत्त्व




सत्व यानी हमारी बुद्धि के अंदर रहने वाला अंधकार रूपी अज्ञान को दूर करने वाला प्रकाश। सत्व मनुष्य के अंदर अज्ञान को दूर कर ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करता है। सात्विक मनुष्य वह सुख और दुख दोनों को एक ही नजर से देखता है। उसके लिए धर्म, सत्य यही सर्वस्व होता है। वह अपने भाई और शत्रु दोनों के बीच जो सत्यवादी होता है, धर्म की राह पर चलने वाला होता है, उसी का साथ देता है। वह यह नहीं देखता कि कौन मेरा भाई है और कौन मेरा शत्रु है। उसके लिए धर्म ही सर्वस्व होता है।

सात्विक मनुष्य संसार में रहते हुए भी संसार से अलग होते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार की मोह माया नहीं होती। वह जो जैसा होता है उसे वैसा ही स्वीकार करते हैं। वह कभी सुख में अतिरिक्त खुश नहीं हो जाते और दुख में कभी अतिरिक्त दुखी नहीं होते। उनके लिए सुख और दुख दोनों ही समान है। वह किसी को अपने से उपर और किसी को अपने से नीचे नहीं मानते। सब को एक समान दृष्टि से देखते हैं। उनमें ज्ञान होते हुए भी उन्हें कभी ज्ञान का अहंकार नहीं होता।

रजस्




जिन व्यक्तियों में रजस् गुण पाया जाता है वह व्यक्ति ज्ञान को जानते हुए भी, धर्म को जानते हुए भी धर्म की राह पर नहीं चलते। ऐसे व्यक्तियों को भी राजसिक व्यक्ति कहा जाता है। राजसिक व्यक्ति लोभ, मोह से घेरा हुआ रहता है। वह जानता है कि धर्म क्या है, क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए पर यह सब जानते हुए भी वह इन बातों को अनदेखा कर देता है और मन के खिंचाव में आकर जैसा आम मनुष्य करते हैं वैसे ही कर्म करने लगता है। इस प्रकार के व्यक्ति में सत्त्व और तमस् का अभाव देखने को मिलता है।

राजसिक व्यक्ति हमेशा दुख को भी प्राप्त होता है। वह कभी मोह, माया से उभर नहीं पाता। इसका सबसे अच्छा उदाहरण दुर्योधन है। दुर्योधन जानता था कि धर्म क्या है पर फिर भी लालसा के कारण वह धर्म को छोड़कर अधर्म की राह पर चलता था।

तमश्




तामसिक व्यक्ति अज्ञान से भरा हुआ होता है। वह दुनिया की देखा देखी करता है। वह यह नहीं जानता कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, क्या सही है और क्या गलत है, क्या सत्य है और क्या असत्य है। ऐसे व्यक्ति बहुत ही आलसी होते हैं। आज के काम को कल पर टालने की कोशिश करते हैं। इन प्रकार के व्यक्तियों में सत्व और  रजस् गुण का अभाव देखने को मिलता है। तामसिक लोग कभी शारीरिक स्तर से ऊपर उठ नहीं पाते।

ऐसे गुण वाले व्यक्ति अगले जन्म में पशु-पक्षी की योनि में जन्म लेते हैं ओर दुख को प्राप्त होते हैं।

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