॥ शिक्षा व्यवस्था ॥ |
पहले के समय में शिक्षा व्यवस्था:
वैदिक काल के समय में जब गुरुकुल में बच्चे पढ़ने के लिए जाते थे। तब वहां उन्हें वह सारी विद्या ऐ सिखाई जाती थी जो उनके गुरुकुल से निकलने के बाद उनके जीवन में उपयोगी होती थी। वह लोग बाहर आकर अपने धर्म को, अपने देश को मजबूत बनाने में अपना अपना योगदान देते थे। वह लोग बुद्धि में तो तेज थे ही साथ ही साथ में शारीरिक तोरपर भी उन्हें गुरुकुल में मजबूत बनाया जाता था।
आज के समय में शिक्षा व्यवस्था:
जबकि आज के समय में स्कूलों में ज्ञान तो दिया जाता है पर वह ज्ञान उन्हें यह नहीं सीखा ता कि व्यावहारिक कैसे बने, अच्छे और बुरे का फर्क करना नहीं सिखाता, जीवन में कौन से मोड पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए यह नहीं सिखाता, सामाजिक जीवन कैसे जीना चाहिए यह नहीं सिखाता। आज के समय में शिक्षा मतलब नौकरी पाना हो गया है। आज आप किसी को भी पूछेंगे की बढ़ाई क्यों करते हो तो उसका जवाब आएगा कि अच्छी नौकरी मिले, अच्छी तनख्वाह मिले इसलिए पर क्या सच में शिक्षा का मतलब नौकरी पाना होता है। क्या इसके अतिरिक्त उसका कोई उपयोग नहीं होता हमारे जीवन मे ?
अच्छी शिक्षा कितनी जरूरी:
शिक्षा सिर्फ नौकरी तक सीमित नहीं है। शिक्षा हमारे जीवन के हर पहलू में हमें काम आती है। हमारे देश को पहले सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसे सिर्फ इसलिए सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था कि हमारे देश में धनसपदा बहुत थी, हां वह तो थी ही पर उसके साथ-साथ उस समय में हमारे देश की शिक्षा अपने उचित स्थान पर थी। हमारे देश के इतिहास में जिन जिन महापुरुषों का नाम है वह सब बड़े-बड़े विद्वान थे। जैसे कि चाणक्य, शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, महाराणा प्रताप, भगत सिंहजी….. ऐसे तो अनेकों नाम है। सब के नाम का मैं यहां पर उल्लेख नहीं कर सकता। जिन्होंने अपने बुद्धि और शौर्य के कारण इतिहास में अपना नाम लिखा हैं।
आज के समय में जो लोग अपनी पढ़ाई पूरी करके निकलते हैं ना तो उन लोगों को अपने देश, अपने धर्म के प्रति कुछ करने का जुनून होता है, ना तो खुद के लिए, अपने समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना होती है। वह तो बस नौकरी या छोटा-मोटा व्यापार करके अपने गृहस्थ जीवन को पूरा करते हैं। इसके अलावा पूरा जीवन यह कुछ नहीं करते। ना अपने लिए, ना समाज के लिए, ना अपने धर्म, सत्य के लिए और ना ही अपने देश के लिए।
ऐसे तो कैसे हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया बनेगा ? क्योंकि हमारे शिक्षा संस्थानों में कई ऐसे विषय जो जीवन में आगे बढ़ने में मानसिक तौर पर आप को मजबूत बनाते हो ऐसे कोई भी विषय हमारे इन स्कूलों में पढ़ाया नहीं जाता। अगर कोई इंसान अपने जीवन में कुछ कर ले तो भी, जब उसके जीवन में संकट आता है तो वह मानसिक तौर पर मजबूत ना होने के कारण हार मान कर स्वयं मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। उसका एक उदाहरण है सुशांत सिंह राजपूत।
सारांश
शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो हमें मानसिक तौर पर और शारीरिक तौर पर मजबूत बनाने का काम करें।