विचारधारा – विचार का निर्माण

 

विचार दिमाग में कैसे बनते हैं और एक ही प्रकार के विचार एक ही इंसान को कैसे आते हैं। वह इंसान जैसे सोच रहा है, वैसे दूसरा इंसान क्यों नहीं सोच पाता? अगर सोच पाता है तो उनमें कई छोटे-छोटे तफावत क्यों होते हैं? तो आज हम इसके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी देने की कोशिश करेंगे।

सोच (विचार) की निर्भरता

हमारे दिमाग में अगर कोई विचार उद्भव होता है, तो उसकी उद्भव होने के पीछे अनेक कारण हो सकते हैं। वह ऐसे ही उत्पन्न नहीं होता, शायद वह विचार उत्पन्न होने में कई सारे कारण, कई सारी परिस्थितियां अपना-अपना अलग-अलग योगदान देती हैं। अभी, अगर आप मेरी बात से सहमत नहीं हो पा रहे हैं, तो आगे आगे जैसे आप यह लेख पढ़ते जाएंगे, वैसे वैसे आप मेरी बात से सहमत होते जाएंगे।

आप और मैं दोनों ही जानते हैं कि जब कोई छोटा सा बच्चा जन्म लेता है, तब उसकी सोचने की क्षमता कितनी होती है। वैसे तो कहे तो बिल्कुल ना के बराबर क्योंकि वह अच्छे से इस दुनिया से वाकिफ नहीं होता है। उसके पास उसका खुद का कोई अनुभव नहीं होता है। वह उसके परिवार के सदस्यों को देखकर, उसके आसपास जो हो रहा है उसे देख कर सीखता जाता है, और वैसे ही उसकी सोच बनती जाती है, उसकी विचारधारा बनती जाती है। और जिन जिन परिस्थितियों में वह बड़ा होता है, वह परिस्थितियां और जिन जिन अनुभव को उसने प्राप्त किया होता है, वह अनुभव उसकी विचारधारा को निर्मित करने में बहुत ही बड़े पायदान पर भाग बजाते हैं।

कभी-कभी इंसान उसके विचारों के आधार पर उस समाज और परिवार से जुड़ता है, और उस परिवार और समाज के लोग किस प्रकार की विचारधारा को अपनाते हैं, उसके मित्र किस विचारधारा को समर्थन करते हैं, उसके मित्रों की विचारधारा से ही उस इंसान की विचारधारा बनती है और उस विचारधारा से ही उस व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्मित होता है। इसलिए विचार बहुत महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

सोच का निर्माण / विचार का निर्माण

एक व्यक्ति क्या सोचता है, वह कई परिस्थितियों पर निर्भर करता है। जैसे कि जब व्यक्ति बच्चा था, तब उसके साथ क्या-क्या घटनाएं घटित हुईं, जब वह व्यक्ति अपने बाल्यावस्था में किस-किस प्रकार की अनुभूतियाँ हुईं, उसे किस-किस प्रकार की बातें बताई गईं, उसे किस-किस प्रकार की विचारधारा से अवगत कराया गया है, क्या करना सही है और क्या करना गलत है, किस हद तक उसे बताया गया है। इन सभी बातों पर निर्भर करता है कि उस व्यक्ति की विचारधारा, यानी विचार मान्यता, सोच किस प्रकार की होगी।

आज के समय में हम क्या देखते हैं, क्या सोचते हैं, क्या पढ़ते हैं, किसके साथ रहते हैं, किस-किस से हमारा वार्तालाप होता है, किस प्रकार के माहौल में हम रहते हैं, किस प्रकार की जॉब हम करते हैं, हमारी फैमिली किस प्रकार की है, हमारे पड़ोसी किस प्रकार के हैं, हमारा समाज क्या सोचता है, आज तक हमने जो जो अनुभव किया है, वह सब बातें एक व्यक्ति के विचार के निर्माण में योगदान देते हैं।

उदाहरण के तौर पर, अगर कोई व्यक्ति एक बिजनेसमेन की फैमिली से बिलॉंग करता है, तो 99% संभावना है कि वह व्यक्ति आगे जाकर बड़ा होकर बिजनेस ही करेगा। अगर कोई व्यक्ति किसी सरकारी फैमिली में जॉब करने वाले लोगों के परिवार से है, तो 99% वह व्यक्ति आगे जाकर सरकारी नौकरी ही लेगा क्योंकि जब से वह व्यक्ति बच्चा था तब से लेकर बढ़ा हुआ है, तब तक उसे इस प्रकार का माहौल मिला है और उस माहौल के आधार पर ही उस व्यक्ति की विचारधारा निर्मित हुई है। और वह व्यक्ति उस कार्य को ही श्रेष्ठ मानता है और उसके बारे में उसके पास ज्ञान होता है। यह तो एक सामान्य सा उदाहरण था, ऐसे तो अनेकों उदाहरण में देख सकता हूँ। आपको मैं यह नहीं कहता कि हर बार ऐसा ही होता है, एकादश प्रतिशत ऐसा नहीं भी होता, पर यह घटना घटित होने की संभावना बहुत ही कम है।

सारांश:

हमारे विचार, विचारधारा, सोच, मान्यता इत्यादि ये सब ऐसे ही निर्मित नहीं होते, इसके पीछे अनेक छोटे-बड़े कारण होते हैं। हम क्या देखते हैं, हम क्या फटते हैं, हम किसके साथ रहते हैं, हमारे मित्र गण कौन हैं, हम किस शाला में पढ़ते हैं, हम किस समाज से आते हैं, ये सब व्यक्ति की विचार विचारधारा को निर्मित करने के कार्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इसीलिए आगे से आप या फिर आपके बच्चे क्या देख रहे हैं, क्या सुन रहे हैं, किसके साथ बैठ रहे हैं, इस बात का ख्याल जरूर रखें। धन्यवाद।

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