जातिवाद क्या है। हमारे धर्म में जातिवाद के बारे में क्या कहा गया है।-Jativad kya he

 जातिवाद क्या है? हमारे धर्म में जातिवाद के बारे में क्या कहा गया है? आज हम इसके बारे में जानेंगे।


जातिवाद क्या है?

जातिवाद शब्द बहुत ही पुराना है। जातिवाद यानी लोगों को उसकी जाति के हिसाब से अलग देखना, उससे अलग व्यवहार करना। अपनी जाति के लोगों के साथ अलग व्यवहार, अलग बर्ताव करना और दूसरी जाति के लोगों के साथ अलग व्यवहार और अलग बर्ताव करना। पर यह जातिवाद शब्द कब से हमारे देश में है? और उसका सही अर्थ क्या है? जातिवाद यानी अपनी जाति से छोटी जाति वाले लोगों से बुरा व्यवहार करने को लोग जातिवाद कहते हैं। आज के समय में यह देखने को भी मिलता है हमें कई जगह पर। पर क्या पहले भी जातिवाद इतना ही छाया था। या फिर जातिवाद नाम की कोई चीज थी ही नहीं।


जातिवाद का सही अर्थ


पहले के समय में जातिवाद जैसी कोई चीज अस्तित्व में थी ही नहीं। हां, पहले के समय में वर्ण व्यवस्था अस्तित्व में थी। तब वर्ण व्यवस्था भी हमारे कर्मों के अनुसार ही थी। यानी जो जैसा कर्म करता है, उसके हिसाब से उसका वर्णन निश्चित किया जाता था। पहले के समय में चार वर्ण होते थे।  जिसका उल्लेख भगवत गीता और मनुस्मृति में देखने को मिलता है। पर कई रूढी वादी लोगो ने इसे वर्ण व्यवस्था को जन्म के आधार पर निश्चित करते थे।

वर्ण व्यवस्था, वह हमारे कर्म के अधीन होती थी। वर्ण व्यवस्था में चार वर्ण हैं। पहला ब्राह्मण, दूसरा क्षत्रिय, तीसरा वैश्य और चौथा शुद्र। लोगों को उनके कर्म के आधीन इन चारों में से किसी एक वर्ण में गिना जाता था। जैसे कोई पढ़ाई में अच्छा हो और लोगों को शिक्षा देने का काम करता हो। तो फिर उसे ब्राह्मण कहा जाता था। अगर कोई अपने क्षेत्र की रक्षा, अपने नागरिकों की रक्षा के लिए सेना में होते थे, या तो किसी सेना में उच्च स्थान पर होते थे उन्हे क्षेत्रीय कहा जाता था। जो व्यक्ति व्यापार या कोई अन्य व्यवसाय करते थे उन्हें वैश्य कहा जाता था और जो लोग दूसरों की सेवा करते थे जो ऊपर बताए गए तीनों वर्णो के अलावा बाकी बचे थे। उन सबको शूद्र कहा जाता था। आज के जमाने के अनुसार पहले के जमाने मे शुद्र से अलग बर्ताव नहीं किया जाता था।

आज के समय में

आज के समय में लोग बहुत ही समझदार होते जा रहे हैं। यह जातिवाद खत्म होता जा रहा है। अभी भी कई लोग हैं जो जातिवाद को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं। पर ऐसे भी कई लोग हैं जो जातिवाद को खत्म करके भाईचारे को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं। यह जातिवाद अंग्रेज थे तब से आज के समय में धीरे-धीरे करके कम होता गया है। जिस समय अंग्रेज से तब यह जातिवाद अपनी चरम सीमा पर था।अंग्रेज हमारे बीच फूट डालने के लिए एवं जातिवाद का सहारा लेते थे। आज के समय में लोग सब समझते है और इस सबसे दूर जा रहे हैं। शायद आगे जाकर यह जातिवाद आपको देखने को भी नहीं मिलेगा।

हमारे धर्मों में क्या कहा है | Hamare dharm me jativad ke bare me kya kaha gya he |

मैंने पहले भी कहा हुआ है और आज फिर से कह रहा हूं। हमारे धर्म में ना तो कभी जातिवाद को बढ़ावा दिया है और ना ही लोगों को जाति में बांटने का कार्य किया है। हमारे यहां वर्ण व्यवस्था थी और वह कर्म के अनुसार, अपने अपने कार्य के अनुसार थी। ऐसा नहीं था कि ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण ही बनेगा, क्षत्रीय का बेटा क्षत्रीय ही कहलाएगा, पर उनके कर्म के अनुसार निश्चित किया जाता था कि वह कौन से वर्ण का है। ब्राह्मण है, क्षत्रीय है, वैश्य है, या फिर शूद्र है। इसका जिक्र हमें मनुस्मृति में और भगवत गीता में देखने को मिलता है। आज के समय में कोई यह पुस्तकें तो पढना चाहता नहीं और कह देते हैं कि हमारे धर्म में तो ऐसा लिखा है वैसा लीखा है। पर सच जानने के लिए एक बार आप पुस्तक को पढीऐ तो सही। तब आपको सच का पता चलेगा।

क्या जातिवाद होना चाहिए

नहीं, बिल्कुल नहीं। जातिवाद से लोगों में घ्रिणा फैलती है और हां स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती जी ऐसे कई और बड़े बड़े लोगों ने जातिवाद का विरोध किया है। जातिवाद तो होना ही नहीं चाहिए। जातिवाद से देश में एक दूसरे के प्रति विरोध की भावना उठती है। जो नहीं होना चाहिए देश की, धर्म की रक्षा के लिए हमें जातिवाद को खत्म करना ही होगा।

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