पुण्य क्या है। पाप क्या है। pap kya he| punya kya hai|

पुण्य क्या है? पाप क्या है? आज हम पाप और पुण्य की सही व्याख्या को जानेंगे। पाप और पुण्य के बीच के तफावत को समझेंगे।

आज के जमाने में लोग पाप को ही पुण्य समझने लगे हैं। कई लोग ऐसे हैं जो पाप और पुण्य में विश्वास ही नहीं करते और अपनी मनमर्जी का करते हैं। वह यह भूल जाते हैं कि इस सृष्टि का एक नियम है। जो जैसा बनेगा वो वैसा पाओगे। जो इंसान जैसा कर्म करता है वैसा ही फल उसे मिलता है। अगर आप पाप करेंगे तो आपको उसकी सजा किसी ना किसी तरीके से मिलेगी ही। अगर आप पुण्य करते हैं तो उसका फल आपको उसी स्वरूप पर मिलेगा।

पुण्य: 

पुण्य यानी सच के साथ चलना, सत्य का साथ देना, सत्य की राह पर चलना, किसी अच्छे इंसान की मदद करना किसी, जरूरतमंद की जरूरत पूरी करना। वैसे तो अनेकों व्याख्यान है पुण्य की। हम यहां पर सभी की बात नहीं कर सकते। अगर मैं आपको दो लाइनों में पुण्य किसे कहा जाता है उसे कहु, तो पुण्य वही है जो किसी को दुख ना पहुंचाएं। सत्य के मार्ग पर चलना और सत्य का पालन करना ही पुण्य है। धर्म को मानना ही पुण्य है। पर हां मैं यहां पर जिस धर्म की बात कर रहा हूं, वह किसी को मारने वाला और किसी को दुख पहुंचाने वाला धर्म नहीं है। क्योंकि आज के जमाने में तो कई छोटे-छोटे धर्म बन गए हैं। मैं यहां पर हमारे वैदिक संस्कृति की बात कर रहा हूं। जिसमें “वसुदेव कुटुंबकम” कहा गया है। एक दूसरे के हाथ बनने को कहा गया है।

पाप:

आज के जमाने में पुण्य करने से ज्यादा पाप करना अधिक आसान है। अगर आप अपनी मेहनत के धन के अलावा किसी ओर के धन पर बुरी नजर डालते हो या उससे छीनने की कोशिश करते हैं। तो यह भी पाप है। ऐसे तो मैं आपको अनेकों उदाहरण दे सकता हूं, पर मैं यहां पर आपको शॉर्ट में समझाने की कोशिश करता हूं। असत्य का दूसरा नाम ही पाप है और अधर्म की राह पर चलना वह भी पाप है। आज के जमाने में बड़े पैमाने पर लोग इसी राह पर चल रहे हैं। क्योंकि पाप करना अधिक आसान है। पर वह लोग यह नहीं जानते कि, उन लोगों को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। चाहे वह परिणाम आज भुगते या कल।

आज का जमाना:

आज के जमाने में लोग पुण्य की राह पर चलना तो जैसे भूल ही गए हैं। जहां देखो वहां लोग एक दूसरे को नीचे गिराने की और दूसरों की प्रगति से जलना। ऐसे तो कई बातें हैं। यह सब पाप कहा गया है। जब हम दूसरों की खुशी से जलने लगे तो समझ लेना कि आपके मन में पाप है। हमेशा जो व्यक्ति दूसरों की खुशी में ही अपनी खुशी देखता है। वह व्यक्ति सबसे बड़ा पुण्यात्मा है। ऐसे लोग आज के जमाने में बहुत ही कम होंगे।

सारांश:

सत्य ही पुण्य है और असत्य ही पाप है। धर्म की राह पर चलना ही पुण्य है और अधर्म की ओर देखना भी पाप है।

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