सच्चा वैराग्य और सच्चा वैरागी । वैराग्य क्या है। sacha vairagya or sacha vairagi | vairagy kya he |

 वैराग्य, यह शब्द सुनने में जितना भारी लगता है।  असल में उतना भारी नहीं है। मैं आज आपको यह समझाने का प्रयत्न करूंगा कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं।



वैराग्य

वैराग्य, इस शब्द को लेकर हमारे मन में कई भ्रांतियां बन गई है। यह सिर्फ हमारे मन में ही नहीं बनी हुई पूरे समाज में भ्रांतियां फैली हुई है। लोगों का मानना है कि वैरागी यानी सब कुछ छोड़ देना। पर क्या सच में ऐसा होता है वैराग्य। नहीं वैराग्य और सब कुछ छोड़ देने में अंतर है। बस यही अंतर में आज समझाने की कोशिश करूंगा। वैराग्य, पर किससे वैराग्य। पहले तो हमें यह समझना जरूरी है। लोग कहते हैं, वैराग्य ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग है पर कोई यह नहीं बताता कि हमें वैराग्य किस से लेना है। क्या पूरी दुनिया से वैराग्य लेना है। किस चीज से वैराग्य लेना है। आखिर वैराग्य होता क्या है। बस इस बात को समझ लिया तो और कोई बात समझने बाकी नहीं रह।

क्या पकड़ना है और क्या छोड़ना है।

यहां वैराग्य का अर्थ हमें किसी भी कार्य के प्रति, किसी वस्तु के प्रति, किसी भी घटना को लेकर, किसी भी इंसान को लेकर जो हमारी प्रतिक्रिया होती है वह निष्पक्ष होनी ही सच्चा वैराग्य है। यह मैं आपको एक उदाहरण देकर समझाने की कोशिश करूंगा। अगर आप कोई कार्य कर रहे हैं और उस कार्य में आप परिणाम की चिंता नहीं करते पर अपना सर्वस्व लगाकर उस काम को करते हैं। तो वह एक वैराग्य है। क्योंकि सुख और दुख उसी को होता है। जो किसी परिस्थिति या किसी कार्य को या तो सफलता या तो निष्फल ता के भाव से करता है। उसे ही सुख और दुख होता है। मैं यह नहीं कहता की वैरागी को सुख की अनुमति नहीं होती। वैरागी हमेशा ही सुख की स्थिति में होता है। क्योंकि, उसे किसी काम के परिणाम से लेना-देना ही नहीं होता है।  वह तो सिर्फ काम को निस्वार्थ भाव से करता है। और हमेशा अपनी ही धुन में रहता है। वही सच्चा वैरागी होता है।

सारांश

कहने में तो यह छोटी बातें पर इसे जीवन में उतारना बहुत बड़ी बात है। जो व्यक्ति इसे अपने जीवन में उतार लेता है। वही सच्चा बैरागी कहलाता है।

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